साझेदारी का आशय

 

                                साझेदारी का आशय?


        साझेदारी का जन्म समझौते से होता है जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी व्यापार को प्रारंभ करना चाहते हैं उस व्यापार में अपनी पूंजी लगाते हैं तथा उस व्यापार का संचालन व प्रबंधन करते हैं और उस व्यापार से उत्पन्न लाभ को आपस में बांटने का फैसला करते हैं तो इस प्रकार के व्यापार को साझेदारी व्यापार कहते हैं।

"साझेदारी उन व्यक्तियों के बीच संबंध है जिन्होंने किसी ऐसे व्यवसाय के लाभों को बांटने का ठहराव किया है जो कि उन सब के द्वारा या उन सब की ओर से उनमें से किसी के द्वारा चलाया जाता हो।"

साझेदारी की विशेषताएं बताइए?

साझेदारी की निम्न विशेषताएं हैं

1 ) ठहराव या अनुबंध का होना- साझेदारी व्यापार की स्थापना के लिए ठहराव यानी अनुबंध का होना आवश्यक होता है क्योंकि साझेदारी का जन्म समझौते से होता है समझौता या अनुबंध लिखित या मौखिक हो सकता है।

2) साझेदारों की संख्या - साझेदारी में कम से कम 2 व्यक्तियों का होना आवश्यक है और अधिक से अधिक 50 व्यक्ति हो सकते हैं

3 ) लाभों को बांटना-  साजिदारी व्यवसाय में लाभों को बांटना अनिवार्य है किंतु हनी को बांटना अनिवार्य नहीं

4 )व्यवसाय का संचालन-  फार्म का व्यवसाय सभी साझेदारों द्वारा अथवा उनकी ओर से नियुक्त व्यक्ति द्वारा या उनमें से किसी एक व्यक्ति द्वारा संचालित किया जा सकता है।

5 )असीमित दायित्व-  साझेदारी व्यापार ने साझेदारों का दायित्व असीमित होता है असीमित दायित्व से तात्पर्य व्यापार के दायित्व अर्थात ऋण को चुकाने के लिए व्यापार की संपत्ति कम पड़ जाती है तो साझेदर अपनी निजी संपत्ति से ऋणों का भुगतान करें इस प्रकार का दायित्व असीमित दायित्व कहलाता है।

6) पूंजी लगाना अनिवार्य शर्त नहीं -सामान्यता प्रत्येक साझेदार निश्चित अनुपात में पूंजी लगाता है किंतु बिना पूंजी के भी कोई व्यक्ति साझेदार बन सकता है व्यवसाय में परामर्श देने या कुशलता के कारण किसी व्यक्ति को साझेदार बनाया जा सकता है।

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